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21.11.09

क्या आत्म-हत्या करना एक आखरी रास्ता हैं?


कई लोग सोच रहे होंगे की क्या आत्म-हत्या करनेकी बात ये लड़का क्यों कर रहा हैं, लकिन कई बार हमारे जीवन में कई ऐसी परिस्थितिया और माहौल ऐसे आ जाते हैं जो बिल्कुल प्रतिकूल होते हैं. अभी कुछ दिन पहले ही मेरे साथ भी यही हुआ.
रात में सोच रहा था की काश की मैं इस दुनिया में आया ही नहीं होता|
लेकिन अगले दिन सुबह सब कुछ पहले जैसा ही हो गया और फिर मुझे रात वाली बात याद आई और मुझे काफी ज्यादा दुःख इस बात का हुआ की मैंने पिछली रात अपने मूल्यवान जीवन को नष्ट करने के बारे में सोचा . ये जीवन तो उस भगवन की देन हैं  और मैं कौन होता हूँ इसे नष्ट करने वाला और तो और मैंने ये तक नहीं सोचा की अगर मैं इसे ख़त्म कर देता तो उन लोगो का क्या होता जो मेरे इतने करीब हैं की मेरी हर सांस के साथ उनकी भी साँसे जुडी हुई हैं.
हम लोगो को जब तक सुख मिलता हैं तब तक हम कभी किसी को भी नहीं कोसते या कभी भगवन को भी शुक्रिया अदा नहीं करते. लेकिन जैसे ही वो सुख चला जाता हैं तो हमारा स्वाभाव कुछ ऐसा क्यों हो जाता हैं की सिर्फ हम शिकायते ही करते रहते हैं और उस भगवन को कोसते हैं की हमारी ऐसी परीक्षा क्यों ले रहा हैं? क्या ये सही हैं ?

मुझे इस बात का अफ़सोस हैं की मैंने अपनी उस माँ के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचा जिसने मुझे पैदा किया ? और पुरे नौ महीने अपनी कोख में पाला और वो दर्द सहा...........
माँ-बाप का दर्जा  तो भगवन से भी उचा होता हैं लेकिन मैंने अपने उसी भगवन को ही अपमानित किया. मैं बेवकूफ सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए ही ऐसा करने की सोच रहा था.

लेकिन जब मेरा इरादा अगले दिन बदला तो मुझे इसका अहसास हुआ की मैं कितना गलत था!!!!!
मेरी उस बेतुकी सी सोच का क्या अंजाम होता. लोग तो यही कहते न की बेवकूफ था वो जिसने आत्महत्या कर ली और अपने माँ-बाप, दोस्तों, भाई - बहनों को रोता बिलखता छोड़ गया अपने पीछे, ऐसी औलाद होने से अच्छा तो ये होता की हमरी औलाद ही ना हो.
क्यों ये सच हैं न !! जो व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली हर उन समस्याओ को सुलझा न पाए तो उस व्यक्ति को आप क्या कहेंगे ???
मुझे पता हैं आपका उत्तर क्या होगा ?

आप उस व्यक्ति को कायर  कहेंगे जिसने सिर्फ अपने हिस्से का सुख तो भोग लिया लेकिन अपने हिस्से का दुःख भोगने के लिए अपने प्रियजनों को अपने पीछे छोड़ गया.

लेकिन उन परिस्थितियों में मेरी जगह कोई भी व्यक्ति होता तो वो भी ऐसा ही सोचता की .........
लेकिन क्या करे इंसान की फितरत ही कुछ ऐसी होती हैं की वो वो सब करने की सोचता हैं जो उसे नहीं करना चाहिए.

इस घटना से मैंने तो एक बहुत ही अच्छी सीख ली की...
चाहे जैसी भी परिस्थितिया क्यों न आ जाये मेरे सामने, उसका डट कर सामना करना हैं. क्योंकि अगर मैंने दुबारा आत्महत्या करने का सोचा तो मेरे बाद कई और हत्याए होंगी, किसी माँ की उन सभी इच्छाओ का, किसी पिता की उन उमीदो का, किसी बहन की उन आशाओ का, जो उन्होंने अपने उस बेटे से लगा रखी थी जो उन्हें बेसहारा छोड़ गया.

5 comments:

Unknown said...

nice 1 !!

शरद कोकास said...

आत्महत्या के प्रयास मे असफल होने पर ज़्यादा से ज़्यादा सज़ा एक साल है .. और शादी मे सफल होने पर ..ज़िन्दगी भर .. सोचना आपको है ।

जय said...

jindi me kabhi kabhi paristhitiyan aise duschakra bunti hain ki hum apne jeevan se hi Nirash hokar ise nasht karne ki baat sochte hain....Lekin woh insaan kya jo paristhitiyon se ghbra jaaye...

जय said...

jindi me kabhi kabhi paristhitiyan aise duschakra bunti hain ki hum apne jeevan se hi Nirash hokar ise nasht karne ki baat sochte hain....Lekin woh insaan kya jo paristhitiyon se ghbra jaaye...

neha said...

jindagi ek sangharsh hai. sukh or dukh to sabhi ke jindagi me aate hai per insan ko paristithe ke aage kabhi haar nahi manni chahiye or na he jiwan me kabhi nirash hona chahiye balke sangharsh karna chahiye .